भारत का 280 अरब डॉलर का आईटी उद्योग वर्ष 2026 की ओर बढ़ते हुए एक जटिल संतुलन बना रहा है। एक ओर वीज़ा से जुड़ी चुनौतियाँ और वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता हैं, तो दूसरी ओर उद्योग का अब तक का सबसे बड़ा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) विस्तार और ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) का तेज़ी से फैलाव देखने को मिल रहा है।
अमेरिका के H-1B वीज़ा कार्यक्रम पर बढ़ी सख्ती ने भारतीय आईटी कंपनियों की चुनौतियाँ बढ़ा दी हैं। नए वीज़ा पर 1 लाख डॉलर शुल्क लगाने के प्रस्ताव और 25% आउटसोर्सिंग टैक्स जैसी आशंकाओं ने सीमा-पार सेवाओं को और जटिल बना दिया है। इसी बीच, कंपनियाँ ऑनसाइट स्टाफिंग पर निर्भरता कम करने और अधिक काम ऑफशोर व डिजिटल मॉडल के ज़रिए करने की रणनीति को तेज़ी से आगे बढ़ा रही हैं।
अमेरिका अब भी इस उद्योग के लिए सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य बना हुआ है।

2025 के अंत में सामने आए वीज़ा प्रस्तावों ने बाज़ार में तेज़ उतार-चढ़ाव पैदा किया। इससे यात्रा योजनाएँ प्रभावित हुईं और आईटी शेयरों पर दबाव पड़ा। बाद में जारी आंशिक स्पष्टीकरण से कुछ राहत ज़रूर मिली, लेकिन अब सोशल मीडिया स्क्रीनिंग और वीज़ा प्रक्रिया में अनिश्चित देरी को लेकर नई चिंताएँ उभर रही हैं।
विश्लेषकों का कहना है कि वीज़ा शुल्क में तेज़ बढ़ोतरी बड़े आईटी कंपनियों की लागत में सैकड़ों मिलियन डॉलर का इज़ाफा कर सकती है। इससे ऑफशोर डिलीवरी और अमेरिका के बाहर वैकल्पिक हब्स की ओर झुकाव और मज़बूत होगा। उद्योग जगत के नेताओं का तर्क है कि भारतीय आईटी कंपनियाँ पहले ही जोखिम कम कर चुकी हैं—अमेरिका में स्थानीय भर्ती बढ़ाकर और भारत-आधारित डिलीवरी क्षमताओं को सुदृढ़ बनाकर।
हालाँकि भू-राजनीतिक तनाव और व्यापारिक खींचतान निकट अवधि की तस्वीर को धुंधला बना रही हैं, लेकिन यही परिस्थितियाँ नियामकीय जोखिम को संभालने और मार्जिन सुरक्षित रखने के लिए भारत में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) के विस्तार में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की रुचि को भी तेज़ कर रही हैं।

2025 में वीज़ा सख्ती और भू-राजनीतिक तनाव से बढ़ा डी-रिस्किंग का रुझान
सितंबर में H-1B वीज़ा से जुड़ी 1 लाख डॉलर फीस की खबर ने भारी हलचल मचा दी थी। इस फैसले से न सिर्फ बड़ी संख्या में लोगों की यात्रा योजनाएँ प्रभावित हुईं, बल्कि आईटी कंपनियों के शेयरों पर भी नकारात्मक असर पड़ा। बाद में यह स्पष्ट किया गया कि यह नियम केवल नए वीज़ा आवेदनों पर लागू होगा, जिससे अमेरिका-भारत आईटी सेक्टर के सबसे बड़े निर्यात बाजार में कुछ हद तक राहत देखने को मिली।
हालांकि हाल के दिनों में H-1B वीज़ा आवेदकों के लिए सोशल मीडिया की सख्त जांच की चर्चाओं ने फिर से चिंता बढ़ा दी है। इससे वीज़ा प्रक्रिया में अनिश्चित देरी की आशंका जताई जा रही है, जो वैश्विक कंपनियों और पेशेवरों के लिए जोखिम प्रबंधन यानी डी-रिस्किंग को 2025 में एक अहम रणनीति बना रही है।
नए H-1B वीज़ा पर यदि 1 लाख डॉलर तक का शुल्क लगाया जाता है, तो इससे बड़ी टेक कंपनियों की लागत सैकड़ों मिलियन डॉलर तक बढ़ सकती है। फॉरेस्टर के प्रिंसिपल एनालिस्ट बिस्वजीत महापात्रा के अनुसार, इस तरह के अतिरिक्त खर्च कंपनियों को अपना काम विदेशों में शिफ्ट करने के लिए मजबूर कर सकते हैं, जिससे भारत और अमेरिका के बाहर मौजूद डिलीवरी सेंटर्स को और मज़बूत किया जाएगा।
वैश्विक व्यापार में बढ़ते तनाव और H-1B वीज़ा से जुड़ी अनिश्चितताओं ने टेक एक्सपोर्ट सेक्टर के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इन चुनौतियों के बीच बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में अपने ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCC) का विस्तार अधिक आक्रामक रणनीति के साथ कर सकती हैं, ताकि नियामकीय जोखिम को कम किया जा सके और मुनाफे को सुरक्षित रखा जा सके।
नैसकॉम की चेयरपर्सन और SAP लैब्स इंडिया की मैनेजिंग डायरेक्टर सिंधु गंगाधरन का कहना है कि H-1B वीज़ा कार्यक्रम मूल रूप से अमेरिका में टेक्नोलॉजी स्किल की कमी को अस्थायी रूप से पूरा करने के लिए बनाया गया था। उनके अनुसार, भारतीय आईटी कंपनियों ने समय के साथ H-1B पर निर्भरता घटाई है और स्थानीय टैलेंट को अधिक प्राथमिकता देकर अपने बिज़नेस मॉडल को सुरक्षित बनाया है।
उन्होंने आगे कहा कि उच्च-कौशल प्रतिभा नवाचार, प्रतिस्पर्धा और आर्थिक विकास की रीढ़ है। ऐसे समय में जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और अन्य उन्नत तकनीकें वैश्विक प्रतिस्पर्धा की दिशा तय कर रही हैं, स्किल्ड टैलेंट की भूमिका और भी अहम हो जाती है।
2025 की धीमी शुरुआत, फिर AI की तेज रफ्तार
साल 2025 की शुरुआत में वैश्विक आईटी खर्च सुस्त रहा। अमेरिका और यूरोप की कंपनियों ने विवेकाधीन बजट में कटौती की, जिससे क्लाइंट खर्च दबाव में रहा। हालांकि, जैसे-जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) प्रोजेक्ट्स परिपक्व हुए और बैंकिंग, फाइनेंशियल सर्विसेज और इंश्योरेंस (BFSI) सेक्टर में स्थिरता लौटी, साल के दौरान माहौल बेहतर होता गया।
भारत में AI और डेटा सेंटर पर बड़ा दांव
माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी वैश्विक टेक कंपनियों ने भारत में गीगावॉट-स्तरीय डेटा सेंटर्स और सॉवरेन AI इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए अरबों डॉलर के निवेश की घोषणा की। इससे भारत को AI और क्लाउड टेक्नोलॉजी का एक बड़ा हब बनाने की दिशा में मजबूती मिली है।
डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और AI का संगम
माइक्रोसॉफ्ट इंडिया और साउथ एशिया के प्रेसिडेंट पुनीत चंदोक के अनुसार, जब डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर और AI एक साथ आते हैं, तो तकनीक का उपयोग बड़े पैमाने पर संभव हो जाता है। इसी सोच के तहत माइक्रोसॉफ्ट ने भारत में क्लाउड, AI इंफ्रास्ट्रक्चर और स्किल डेवलपमेंट के लिए 17.5 अरब डॉलर निवेश की प्रतिबद्धता जताई है।
वैश्विक स्तर पर AI निवेश में उछाल
दुनिया भर में AI सेक्टर में निवेश 200 अरब डॉलर के पार पहुंच गया है। हालांकि, हाइपरस्केलर्स, स्टार्टअप्स और चिपमेकर्स के बीच घूमते फंड्स ने बाजार में अधिक गर्मी (ओवरहीटिंग) को लेकर चिंताएं भी बढ़ाई हैं।
भारतीय IT कंपनियों का बढ़ता भरोसा
भारत की प्रमुख आईटी कंपनियों ने अपने आउटलुक में सुधार किया है। इंफोसिस ने वित्त वर्ष 2026 के लिए रेवेन्यू गाइडेंस बढ़ाकर 2–3% कर दी, जबकि HCL टेक्नोलॉजीज ने अपनी सर्विसेज ग्रोथ का निचला स्तर 4–5% कर दिया है।
इंफोसिस का बड़ा शेयर बायबैक
इंफोसिस ने सितंबर में अब तक का सबसे बड़ा शेयर बायबैक मंजूर किया। कंपनी ने ₹18,000 करोड़ के टेंडर ऑफर के जरिए ₹1,800 प्रति शेयर की कीमत पर शेयर वापस खरीदने का फैसला लिया, जिससे शेयरहोल्डर्स को सीधा लाभ मिलेगा।
